Thursday 20 June 2013

 जी करता है
तुम्हे शब्दो मे ढाल,
 कैद कर लू कागज के पन्नो मे
कही  जाने ना दू……।

तुमने कहा था
 जा रहे हो तुम
सुना था मैने
 पर न जाने क्या…

शायद  कुछ टूट्ने की

दिल के किसी कोने से
आती हुयी सिसकिया थी
 या  इस दूरी मे भी
तुम्हारा प्यार पाने कि तपिश
पता नही …
लेकिन कुछ था

जिस से
 दिल अभी भी
दर्द के गिरफ़्त मे है
और  आसू। कोशिश कर रहे है
उसे आ्जाद करने की
उस अनजान तपिश से




Thursday 18 April 2013

सपनो की घाटीयाँ और तुम

    सुनो न
   रात अब एक उदास नदी सी लगती है
,पता है तुम्हे


 जब मै खामोश थी
तुमसे  कुछ भी ना कहा था
ना बताया था अपना दर्द, ना
तुम्हे तुम्हारा, किस्सा ही सुनाया था


 तब मैने
किताबो से वक़्त चुराकर
दुनिया कि नजरो से छुपकर
सपनो की घाटिया रची थी
और बहोत खुश थी तुम्हे
उन घाटीयो  मे पाकर

 हर शाम
उन घाटीयो मे
खिले हुए मोगरे के फ़ूलो और
अपरिचित परिजात की,
 पन्खु्ड़ीयो के सन्ग
गुँज़ते मधुर
, सँग़ीत बीच
  तुम्हारा साथ बहोत,
 अच्छा लगा था,


मै आँख़े बन्द किये,
चलती रही
बहोत देर,
 बहूत दूर तक




मैने जब आँखे खोली तो
 तुम मेरे पास नही थे
 तुम वहाँ नही थे
तुम कँही नही थे
 तुम्हारा साथ सिर्फ़ कोरी
कल्पना थी मेरी

मैने हर दिशाओ मे
 तुम्हारा नाम पुकारा
 पर आवाजे  लौट आयी
 ट्कराकर कर
 पर्वत  से
 घाटी  से
क्षितिज से

पता है
मै लौट कर वहाँ भी गयी
जहा तुम खड़े थे
पर वहाँ तुम नही
 तुम्हारी  शकल की
एक पत्थर की मूरत थी


तो मैने एक पत्थर को प्यार किया था?????
शायद हाँ …
पर सुना, है सौन्दर्य देख
 सजीव हो उठ्ते  है पत्थर भी
काश की मै   जगा पाती भाव ,उस पत्थर के
पर मुझमे वो,  अदभुत सौन्दर्य कहाँ? ?                                                                                                                                    
इसलिये अब,  सुनी विरान है घाटी
  बिखरे पड़े है ख्वाब
 भरम टूट चुका है …

 सपनो की उन घाटीयो मे
 फ़ूल खुश्बू हवाओ  बीच
   फ़िर से अकेले हु मै

उस घाटी से होकर एक नदी जाती है
खडी हो उस नदी किनारे मै
अब भी आवाज देती  हु तुम्हे
क्या उसे कभी सुन पाओगे तुम
क्या नदी की लहरो से
अश्रू मेरे चुन पावोगे तुम ?
क्या मेरी रात मेरे ख्वाब मेरी नींदे
वापस  कर पाओगे तुम ?
बोलो ना…

Tuesday 2 April 2013

एक अरसे से चल रही थी अकेले





माँ
   इस सूने रास्ते पे, मै
एक अरसे से चल रही हू अकेले


समय बीत गया पर…
मै आज भी वही हू माँ
   मै खो गयी हू…

.मुझे ले चलो  ना दुर बहुत दुर
बहोत अनजान सी डगर है

मैने हर रात ख्वाब देखे थे
 ख्वाबो मे बहोत  अच्छे लगे थे ये रास्ते पर

ख्वाब मे कोई और भी था
मेरे साथ
 मै अकेले तो नही थी
 पर माँ  मै अकेले हू…अब
 और ख्वाब टूट चुके है


  टूटे ख्वबो क किरचे
रह रह के पलको मे चुभते है

माँ
 इस सूने रास्ते पे  मै
एक अरसे से चल रही थी अकेले







Tuesday 26 March 2013

तुम्हे कुछ तो खबर होगी


तुम्हे प ता है  ?
 मै खुद को
तुम मे    ढुन्ढ्ति हु्……
तुम्हारी आन्खो मे चाह ती हू
खुद  को देखना..…..
हा थो की लकीरो मे भी
काफ़ी देर तक, खुद   को,
ढुन्ढ्ति रही थी मै

तुम्हे प ता है
उस शाम खुले आसमा के नीचे
चलते चलते
जाने कित्ने प्रस्न चलते थे  
मन के कोरो पर        
वो छट्पटते रहे……
लबो तक ना आ  सके
जैसे , कैद कर लिया हो ,किसी ne

शब्द साथ नही देते              
और लब खामोश है
एक अरसा हुआ          
इस दर्द को,
खमोशी से जीती हू

Sunday 17 March 2013

उदासी आन्खो मे उतर आयी है दर्द होठो पे कैद है

नाराजगी आन्खो मे दिखती  है  …दर्द  होठो पे कैद  है 
  • वो बावरी सी  लडकी,  सच मे बावरी ही तो है                                                                                                                                              
      सावन, फ़ागुन, बसन्त  
जाने  कितने  मौसम  बीत  गये,                                                                                                                               
    हर मौसम मे इन्तजार किया ,
 ,हर दिन इन्तजार किया
  पर तुम्हे खोने के डर से  कभी
 पाने की कोशिश न ही की,
    तुम से कभी मिलना नही चाहा…    
 कभी आकाश के बन्जारे बादल से
 तुम्हारी बाते करती रही 
…तो कभी बारिश कि बूदो को
 छुकर तुम्हे  मह्सूस किया्… 
                                                                                 
  एक अजीब सी दुनिया   है  उसकी
 ,जहा सिर्फ़ शब्द ही शब्द है 
  उन शब्दो को अर्थ देने लगे थे तुम     
…तुम्हे शब्दो मे ढाल कर  पढने लगी थी वो     
        पर उस के आन्सुओ को कैसे समझ पाओगे तुम 
…उस के दर्द को भी न पढ सकोगे 
…क्यूकी तुम्हे तो कुछ खबर ही न ही 
…शुरु से बेखबर रहे हो                                            
      तुम तो अपने दरवाजे पे दस्तक देते
 , उसके भावो  की आहट भी ना सुन सके थे
… वो भाव आज़ भी उसी दह्लीज पर खडे    है
      …
…एक दिन ठीक  ही कहा था 
 उसने की ख्वाब  हो तुम्                               
   तो ऐसा करो न किसी दिन वो सो जाये तो…
चुपके  से  उसकी आन्खो से निकल के 
दूर बह्त दूर चले जाओ
…जहा तक उसके भाव ना पहुच पाये ,,
,जहा उस के शब्दो कि सीमा समाप्त हो जाती हो
…उसे दर्द से मुक्ति दे दो 
और खुद को उसकी अजनबी कैद से…


Friday 25 November 2011

khwab

....sadiyo se khwab aur hakikat k bich jang hoti aayi hai...........jab hme is duniya ki hakikat se uljhan hoti hai to hm khwabo k aagosh me chle jana chahte hain...aur jab apne khwab bemani lagte hai to hakikat k pahlu se rubru hote hain hm....